Re-posting a vividly descriptive blogpost by one of our senior-most and esteemed trekkers, Mr. Dilip Pidiyar. We give him full credit for his creative work, and thank him for joining us on our JT2 Trek To Gwaru Nala, 2017! – Team Junoon
“हिमालय पर्वतराज की श्रंखला में मनाली के ६ km आगे पर्वत चढ़ाई करने पर बेस कैंप बसा है । आकर्षक विहंगम दृश्य हिमालय की वादियों का दिखाई दे रहा है। पर्वत की श्रंखला में ढलाई पर जहाँ पर थोड़ी समतल ज़मीन दिखी वहीँ पर टेंट्स लगाए गए है। निसर्ग के साथ कोई छेड़खानी नहीं की गयी है. हिमालय में सेव, अखरोट की खेती प्रायः होती है. वह भी दिखाई दे रहे है. सामने ऊँचे पर्वतराज है. पूरा पर्वत ऊँचे-ऊँचे चीड़ के पेड़ों से ढका है. पर्वत की खाई में व्यास नदी कल कल कर बह रही है. उसकी विहंगम मनमोहक आवाज़ सुनाई दे रही है. चोटियों पर बर्फ की चादर ढकी है. वह चाँदी सी चमक रही है. कैंप से सभी लोग ट्रेक पर गए है. आज हम बेस कैंप में आराम कर रहे है. पांडेय जी और उनकी पत्नी भी यही रुके है. उनकी पत्नी के पाँव में मोच आयी है. हिमालय में चलते वक़्त बहुत सावधानियां बरतनी पड़ती है. छोटी सी पगडण्डी पर संभल कर चलना होता है. एक तरफ गहरी खाई दूसरी तरफ ऊँचा हिमालय. पर्वत श्रंखला में चोटियों पर बर्फ गिरती है. बर्फ सूरज की रोशनी से पिघल कर झरने बनकर बहते है. हिमालय में रहने वाले लोग पीने के पानी के लिए इन्ही झरनो का सदुपयोग श्रोतों से करते है.
पर्वत की ऊँची चोटियों से बादल टकराकर बरसतें हैं. कभी धुप कभी छांव आ जाती है. बादल भी नीचे ही दिखते है. कैंप साइट बहुत ही अच्छी है. पास में ही बनारा गांव बसा है. नाग मंदिर भी है. जिसमे महिलाओं का जाना वर्जित है. मंदिर पुराने काल में पत्थरों का बना हुआ है. पर्वत राज दिखाई दे रहे हैं. नीचे खाई में व्यास नदी का पवित्र शुद्ध और ठंडा जल कल कल कर बह रहा है. ट्रैकिंग करते वक़्त बहुत सी सावधानियां बरतनी पड़ती है. पगडण्डी पर चलते वक़्त एक एक कदम संभल कर रखना पड़ता है. क्योंकि जीवन और मृत्यु के बीच एक डेढ़ फुट का अंतर रहता है. गुरूजी श्रीराम शर्माजी द्वारा लिखित किताब ‘सुनसान के सहचर’ में हिमालय यात्रा का वर्णन करते वक़्त (१९५८ में) लिखे शब्द याद आ गए. योग सर टीम को लेकर शार्ट ट्रेक पर गए है. बेस कैंप में शांत वातावरण है. मैं और गायत्री सेव की पेड़ की छांव में त्रिपाल डालकर बैठे है. पक्षियों की चहकने की आवाज़ आ रही है. बीच बीच में खाना बनाने वालों की बर्तनो की आवाज़ आ रही है. मिशी और रूबी कैंप में देखरेख कर रहे. टीम लौट कर आते ही खाना खाएंगे इसलिए वो दोनों तयारी में जुटे है. दोपहर में सूरज की रोशनी से गर्मी बढ़ जाती है. लेकिन शाम होते होते बारिश होकर मौसम ठंडा हो जाता है.
आज सुबह ९:३० am बेस कैंप से टॉप कैंप ट्रैकिंग हेतु निकले. सुबह का चाय नाश्ता होने पर सभी ट्रैकिंग सूट पहनकर, मोज़े जूते, रेनकोट, जैकेट, कैप, मफलर, और ट्रैकिंग बैग लेकर ५५ लोगों की टीम ट्रैकिंग हेतु निकल पड़ी. जिसमे १० साल के बच्चे से ६० साल के मेंबर थे. बेस कैंप से १० बजे नीचे उतरना शुरू किया और रोड पर आने पर टेम्पो टैक्सी जीप द्वारा ६००० RD पॉइंट तक गए. वहां उतरकर पैदल ट्रैकिंग शुरू की. हम दोनों ‘दुहनगन’ नदी तक जहाँ बर्फ जमी थी, वहां तक गए. कैंप साइट से पहाड़ों की चोटियों पर जमी बर्फ चाँदी के समान चमक रही थी. मानो वह चाँदी के पहाड़ हों. लेकिन पास जाने पर भ्रम टूट जाता है. हम अवन्ति और उसकी बीवी २ बच्चों के साथ बर्फ के समीप पैदल चलकर गए. रास्ते में हाइड्रो पावर स्टेशन भी है. पहाड़ों से नीचे गिरने वाले पानी को स्लोप बनवाकर अंडरग्राउंड टर्बिन लगाकर बिजली का उत्पादन हिमाचल विद्युत् मंडल करता है. सभी साथी बातें करते हुए चल रहे थे. हंसी मज़ाक पांडेय जी बहुत करते है. लेकिन जब सकरी पगडण्डी आ जाती थी तो सभी बातें बंद करके अपने कदमो पर ध्यान देने लगते थे. यह दृश्य बहुत ही शोभायान था. गायत्री और अवन्ति के बच्चे बर्फ इक्कठा कर लड्डू बना कर उछाल रहे थे. बर्फ की चादर नहर पर बनी पड़ी थी. यह दृश्य इतना आकर्षक और प्राकृतिक सुन्दरता इतनी मनभावन है की यहाँ से जाने को दिल नहीं कर रहा. जूनून के साथ ये ६ दिनों का साथ यादगार रहेगा.”