“Saquib Khan is one of our esteemed Junoonis who has been accompanying us since last year on various treks. Junoon Adventure gives him full credit for writing this wonderful description of Junoon’s Awaargi Trek to Bagra Tawa. This blog can also be read on his website https://andaze-juda.blogspot.com/2018/11/blog-post.html ” – JUNOON ADVENTURE
जंगल के बीच बारिश का ओवरडोज….और भूतिया महल में अंधेरी बावडिय़ों से निकलती चिमगादड़ें
हल्की हल्की बारिश की बूंदे, पहाड़ों की वह ऊंचाईयां जहां से उड़ते हुए गिद्ध भी आपको नीचे दिखाई दे रहे हैं, लंबी-लंबी गीली घास पर फिसलते पैर, और टेक्नीकल सपोर्ट देती जुनून टीम, जहां से दिख रहा था आजाद भारत का पहला स्टील ब्रिज, हर कोई बस उसे निहारने में लगा था, क्योंकि बड़ी मुश्किल से जो यहां तक पहुंचे थे। फिर जंगल जैसे जैसे घना होता गया बारिश भी घने जंगल की तरह अपने पैर पसारती गई। अब चलना और मुश्किल हो गया था क्योंकि अगर एक बार जूते गीले हो जाएं या उनमें पानी भर जाए तो फिर खूबसूरत जंगल थोड़ा ‘कम अच्छा’ लगने लगता है यह सफर इतना आसान नहीं था जितना लगने लगा था क्योंकि बारिश अपने पैर पसारती ही जा रही थी। तो आईए जानते हैं बागरा तवा ट्रेकिंग के दौरान जंगल की खूबसूरती के बीच बारिश का डोज….इस बीच कुछ अच्छा तो बस यह कि आप कुदरत के उन अनछुए पलों को इतनी नजदीक से फील कर सकते थे जिन्हें आप सिर्फ डिस्कवरी या नेशनल जॉगरफिक पर ही देखते हैं। इसके अलावा शाम और रात के पहर में भूतिया महल….की भी जानी कहानी… यानी 25 अगस्त 2018 के दौरान जुनून एडवेंचर के ट्रेंकिंग श्रंखला ‘आवारगी’ बागरा तवा का ट्रेक…
यहां कुदरत और आपके बीच और कोई नहीं
इसकी शुरुआत हुई भोपाल के डीबी मॉल से सुबह 6 बजे जहां करीब 35 लोग इकठ्ठा हुए, यहां कुछ जाने पहचाने चेहरे थे तो कुछ नए, मगर हर एक के चेहरे पर सिर्फ यहां से निकलने की ख्वाहिश, जुनून की टीम से रुपांजलि ने जैसे ही हरी झंडी दिखाई तो हर कोई बाबई यानी होशंगाबाद रोड पर निकल गया। जहां सभी लोग कुछ ही घंटो में पहुंच गए। हल्की-हल्की बूंदा-बांदी शुरु हो चुकी थी सभी ने ब्रेकफास्ट किया जुनून की टीम के साथ कुछ वहां के लोकल एक्सपर्ट्स के साथ चल पड़े। करीब पैतालीस मिनट चलने के बाद अब शुरु हुई एक खड़ी चढ़ाई। इस बीच सभी ने इमली के पेड़ के नीचे ग्रीन के तीन शेड्स भी देखे। इन शेड्स के साथ हर कोई इस खूबसूरत चढ़ाई को भी अपने फोन या कैमरे मैं कैद करना चाहता था मगर सभी को यह नहीं पता था कि जैसे जैसे ऊपर जाते जाएंगे यह जगह और खूबसूरत होती जाएगी। इस बीच कई सारे जंगली और खूबसूरत फूल और बैंबू से कुदरती दरवाजे नुमा झाड़ को निहारते हुए करीब 400 या 500 मीटर तक पहुंचे। यहां थी वह ऊंचाई की पास में उडऩे वाले दो गिद्ध आपसे नीचे उड़ रहे थे। यहां से दिख रहा था आजाद भारत में बना पहला स्टील ब्रिज, हर कोई इस पल को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहता था। यहां की हवा में एक अलग ही कुदरती खुशबू थी जो कुदरत के बीच आने के बाद ही कोई फील कर सकता है लगता था कि बस यहीं ठहर जाओ, ऐसा लग रहा था आज कुदरत और आपके बीच और कोई नहीं…और यहां से शुरु हुआ कुदरत जंगल के उन अनछुए पहलुओं को जीने का समय, यहां फिर से बूंदा बांदी शुरु हो चुकी थी।
फिर फिसलन भरी ढलान पर ‘लीची’ का जोश
फिर अगला चैलेंज था एक खतरनाक ढलान पर ऊगी लंबी-लंबी गीली घास पर उतरना, हालकि टीम जुनून पूरी तरह से टेक्नीकल स्पोर्ट दिया। टीम के लोग थोड़ी-थोड़ी दूरी पर खड़े होकर लोगों का हौसला बड़ा ही रहे थे कि करीब बीस लोग दूसरी पहाड़ी पर योग सर के गाईडेंस में चढ़ाई शुरु कर चुके थे। अब जैसे जैसे थोड़ा सा उतरकर दूसरी पहाड़ी की चढ़ाई शुरु हुई। अभी तक लोग एंजॉय ही कर रहे थे चलते चलते और आधा घंटा बीत गया। इस आधे घंटे के बीच आस पास कुछ ऐसे चैलेंजेज बनने लगे जिनका अभी तक अहसास नहीं था। जैसे जैसे जंगल घना होता जा रहा था खूबसूरत फूल और खरतनाक मकडिय़ों को देखते देखते बारिश दिन के अंधेरे में तेज हुई और यह दोपहर बिल्कुल शाम के मग़रिब के वक्त की याद दिलाने लगी। अब हल्की बारिश में चलते चलते जूते भी गीले हो ही चुके थे क्योंकि बहते पानी का सामना काफी देर से हो ही रहा था। अब कुछ लोग थाकावट फील कर रहे थे मगर इस बीच ‘लीची’ नाम की एक छोटी सी बच्ची, जिसकी उम्र महज 5 साल की होगी वह सभी के लिए इंस्पीरेशन बनी। क्योंकि पूरे ग्रुप में लीची ही ऐसी बच्ची थी जिसके चेहरे पर थकावत बिल्कुल भी नजर नहीं आ रही थी।
टाईगर बफर जोन से निकलो या फिर वापस चढ़ाई
अब हम ऐसी काफी तेज बारिश के बीच पहुंचे एक ऐसी जगह जहां बहते हुए और आसमान से गिरती तेज बौछारों का संगम हुआ। यहां सभी ने 15 मिनट सुसताया, तब पता चला कि हम टाइगर के बफर जोन में हैं। अब टीम के सामने एक मुश्किल फैसला लेने की घड़ी थी हालांकि टीम के पास पूरा टेक्नीकल सपोर्ट और जुझारू लोग भी थे तब टीम जुनून ने फैसला किया कि हम वापस चढ़ाई करेंगे, जो कोई भी चाहता था। हम जिस रास्ते से आए थे वहीं वापस हो लिए कुछ लोगों को अब एडवेंचर भारी लगने लगा था मगर एडवेंचर का मजा भी तो यही है। लिहाजा बारिश में बीच सभी ने वापसी की और थोड़ा-थोड़ा पानी पीते हुए चलने लगे और कभी चढ़ाई कभी उतार मगर काम सिर्फ चलना और चलना। आखिरकार हमें सामने एक सड़क दिखी और सभी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था वहां टीम जुनून की गाड़ियां पहले से ही खड़ी हुईं थीं। गाड़ियों को देख सभी की जान में जान आई और यह गाड़ियां हमें लेकर पहुंची डेम की दीवार के नजदीक जहां सभी को शाम 5 बजे के करीब ताजा खाना परोसा गया।
गहरे अंधेरे में 1180 एडी का भूतिया किला बना एक और चैंलेंज
अब खाना खा लिया था और हर कोई यहां से वापसी चाहता था क्योंकि दिन भर में काफी सारे उतार चढ़ाव देखे भी थे हर कोई जिसके कपड़े गीले थे जूते पानी की वजह से भारी हो चुके थे। अब सभी चाहते थे कि भोपाल की ओर वापसी की जाए। मगर शाम के अंधेरे के बीच जुनून एडवेंचर ने तो कुछ और ही सोच रखा था अभी लोगों को दिखाना था 1180 एडी में निर्मित भूतिया किला जिसको लेकर बागरा के लोगों की कई धारणाएं हैं, लोकल्स मानते हैं कि यहां अंधेरा होने के बाद नहीं जाना चाहिए। हालांकि गहरा अंधेरा था और थके हुए लोग फिर से जोश में आ गए जब बावडिय़ों में से चिमगादड़ें बाहर आती देखीं, किसी ने यहां पर अंधेरे फ्लेश ऑनकर करके वीडियो बनाया तो किसी ने यहां के इतिहास को समझा। जिसमें हुसैन शाह और दुर्गावती जैसे शासकों के बारे में जाना, वाकई भोपाल से महज पचास किमी. की दूरी कुदरत के ऐसे रंगों से परिचय करना अपने आप में एक अनोखा और पूरी जिंदगी के लिए एक यादगार पल ही था।